नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को ‘आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा, जब आपातकाल लगाया गया था, तब मैं 11 साल का था। गुजरात में आपातकाल का असर कम था, क्योंकि वहां जनता सरकार बनी थी। लेकिन बाद में वह सरकार गिर गई। उन्होंने कहा, मैं एक छोटे से गांव से आता हूं। मेरे गांव से ही 184 लोग जेल गए थे। मैं उस दिन और उन दृश्यों को मरने तक नहीं भूलूंगा।
शाह ने कहा, केवल आजाद होने के विचार के लिए जेल जाना, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि वह सुबह भारत के लोगों के लिए कितनी निर्दयी रही होगी। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, आपातकाल को एक वाक्य में परिभाषित करना मुश्किल है। मैंने इसका एक अर्थ निकाला है। एक लोकतांत्रिक देश के बहुपक्षीय लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है।
‘देश में कोई तानाशाही बर्दाश्त नहीं कर सकता’
उन्होंने कहा, यह लड़ाई इसलिए जीत ली गई क्योंकि इस देश में कोई तानाशाही बर्दाश्त नहीं कर सकता। भारत लोकतंत्र की जननी है। उस समय आपातकाल को कोई पसंद नहीं करता था, सिवाय तानाशाहों और उस छोटे-से संकुचित समूह के जिन्हें फायदा हुआ था। उन्हें भ्रम था कि कोई उनकी चुनौती नहीं दे सकता, लेकिन आपातकाल के बाद जब पहले लोकसभा चुनाव हुए, तब पहली बार स्वतंत्रता के बाद गैर-कांग्रेस सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
‘राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं सत्ता की सुरक्षा थी असली वजह’
शाह ने कहा, सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया है। क्या संसद की मंजूरी ली गई? क्या कैबिनेट की बैठक बुलाई गई? क्या विपक्ष को भरोसे में लिया गया? जो आज लोकतंत्र की बात करते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वे उस पार्टी से जुड़े हैं जिसने लोकतंत्र को खत्म किया। जो वजह बताई गई वह राष्ट्रीय सुरक्षा थी, लेकिन असली वजह सत्ता की सुरक्षा थी। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, लेकिन उनके पास संसद में वोट देने का अधिकार नहीं था। उनके पास प्रधानमंत्री के रूप में कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने नैतिकता का दायरा छोड़ दिया और प्रधानमंत्री बने रहने का फैसला किया।