नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि ऐसी व्यवस्था जिसमें पुलिस या जांच एजेंसियां वकीलों को सीधे समन भेज सकती हैं, वह कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को कमजोर करती है और न्याय व्यवस्था की आजादी के लिए एक ‘सीधा खतरा’ है। जस्टिस के.वी. विश्वनाथन और एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने कहा कि कानूनी पेशा न्याय की प्रक्रिया का अभिन्न अंग होता है।

पीठ ने कहा, जब पुलिस या जांच एजेंसियां सीधे सलाह देने वाले वादी या वकील को समन भेजेगी तो यह कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से प्रभावित करेग और इससे न्याय प्रणाली की आजादी के लिए सीधे खतरा पैदा होगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कुछ अहम सवाल भी उठाए। बेंच ने पूछा, कुछ अहम सवाल विचार के लिए सामने आते हैं, जैसे (1) जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल वकील के तौर पर जुड़ा हो और केवल सलाह दे रहा हो, तो क्या जांच एजेंसी, अभियोजन पक्ष या पुलिस उस वकील को सीधे पूछताछ के लिए समन कर सकती है?

बेंच ने दूसरा सवाल पूछा, मान लेते हैं कि जांच एजेंसी, अभियोजन पक्ष या पुलिस के पास ऐसा मामला है, जिसमें किसी व्यक्ति की भूमिका केवल वकील की न होकर कुछ और भी हो तो क्या ऐसे मामलों में उन्हें सीधे समन भेजने की इजाजत होनी चाहिए या फिर इन विशेष परिस्थितियों में न्यायिक निगरानी अनिवार्य की जानी चाहिए?

बेंच ने आगे कहा, इन दोनों बिंदुओं के अलावा अन्य मुद्दे भी उठ सकते हैं और उन्हें व्यापक रूप से सुलझाना जरूरी है। कोर्ट ने कहा, न्याय प्रणाली का असर और वकीलों की क्षमता दांव पर लगी है कि वे ईमानदारी से और सबसे अहम बात बिना किसी डर के अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। बेंच ने कहा कि यह मामला सीधे न्याय प्रणाली को प्रभावित करता है और ऐसे में किसी पेशेवर व्यक्ति को, खासकर जब वह किसी मामले मे वकील की भूमिका में हो, इस तरह से निशाना बनाना पहली नजर में अनुचित लगता है। हालांकि, इस पर कोर्ट आगे और विचार करेगा।

सुप्रीम कोर्ट गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। वकील ने हाईकोर्ट के 12 जून के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मार्च 2025 में हाईकोर्ट ने पुलिस की ओर से भेजे गए समन को रद्द करने से इनकार कर दिया था। यह समन वकील के मुवक्किल के खिलाफ दर्ज एक मामले में जारी किया गया था। हालांकि, शीर्ष कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगले आदेश तक वकील को समन न भेजा जाए और पुलिस की ओर से जारी नोटिस का क्रियान्वयन रोक दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को भी नोटिस जारी कर इसका जवाब मांगा है।

कोर्ट ने यह भी बताया कि पिछले साल जून में दो लोगों के बीच ऋण लेन-देन का एक समझौता हुआ था। फरवरी में उनमें से एक व्यक्ति ने दूसरे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया कि याचिकाकर्ता को आरोपी ने अपना वकील नियुक्त किया था और उसने अपने मुवक्किल की ओर से अहमदाबाद के सत्र कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी। कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी। हालांकि, मार्च में पुलिस ने उस वकील को तीन दिनों के अंदर पुलिस के सामने पेश होने का नोटिस जारी किया।

By Editor