नई दिल्ली: सरकार ने बुधवार को राज्यसभा को सूचित किया गया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में और भाषाओं को शामिल करने की मांगों पर विचार करने के लिए फिलहाल कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती, क्योंकि इसके लिए कोई तय मानदंड मौजूद नहीं हैं।

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक लिखित जवाब में बताया कि सरकार अन्य भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की जरूरतों और भावनाओं से अवगत है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की मांगों पर विचार करते समय इन भावनाओं और अन्य प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखना होता है। उन्होंने कहा, वर्तमान में किसी भी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई निश्चित मानदंड नहीं है, इसलिए इन मांगों पर विचार के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती।

मंत्री ने बताया कि समय-समय पर संविधान की आठवीं अनुसूची में भोजपुरी और राजस्थानी सहित कई भाषाओं को शामिल करने की मांग की जाती रही है। हालांकि, किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई तय मानदंड नहीं हैं।

उन्होंने आगे कहा कि बोलियों और भाषाओं का विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलावों से प्रभावित होती है, इसलिए आठवीं अनुसूची में किसी भाषा को शामिल करने के लिए कोई ठोस मानदंड तय करना कठिन है। मंत्री ने यह भी बताया कि पूर्व में पावा समिति (1996) और सीताकांत महापात्र समिति (2003) की ओर से इस दिशा में किए गए प्रयास भी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सके।

By Editor