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फकीर ने कहा-यह महल नहीं, सराय है

फकीर ने कहा-यह महल नहीं, सराय है
इब्राहीम सम्राट था-बल्ख का। एक फकीर उसके द्वार पर आया और झंझटकरने लगा कि मुझे इस महल में ठहरना है। लेकिन वह ‘महल’ नहीं कह रहाथा। वह कहता था, इस ‘सराय’ में मुझे ठहरना है। बड़े जोर-जोर से लड़ रहाथा वह पहरेदार से।पहरेदार ने कहा, “हजार दफे कह दिया कि यह धर्मशाला या सराय नहींहै। सराय गाँव में दूसरा है। यह राजा का महल है। यह राजा का खुद का निवासहै। तुम होश में हो? तुम क्या बातें कर रहे हो? यह कोई ठहरने की जगह नहीं।”उसने कहा, “फिर मैं राजा को देखना चाहता हूँ।” इब्राहीम भीतर से सबसुन रहा था। उस फकीर की आवाज में कुछ जादू था, कुछ चोट थी। वह जिसढंग से कह रहा था, ऐसा नहीं लगता था कि सिर्फ जिद्दी और पागल है। उसके कहने में कुछ रहस्य मालूम होता था। उसने कहा, “उसे बुलाओ भीतर।” वहफकीर भीतर आया और कहा, “कौन राजा है?” इब्राहीम जो सिंहासन पर बैठाथा, उसने कहा, “हाँ, मैं राजा हूँ। यह मेरा निवास है और तुम व्यर्थ में पहरेदारसे झंझट कर रहे हो।”फकीर ने कहा, “बड़ी हैरानी की बात है! मैं पहले भी आया था, तब दूसरा आदमी इस सिंहासन पर बैठा था और वह भी यही कहता था।”इब्राहीम ने कहा, “वे मेरे पिता थे, जो स्वर्गवासी हो गए।”उसने कहा, “उनके पहले भी मैं आया था, तब एक तीसरा आदमी बैठाथा। और हर बार पहरेदार भी बदल जाते हैं। आदमी भी बदल जाते हैं। यहमकान वही है। हर बार जब मैं आता हूँ, तब यही झंझट!”
इब्राहीम ने कहा, “वे हमारे पिता के पिता थे, वे भी स्वर्गवासी हो गए।”
उसने इब्राहीम से पूछा, “जब मैं चौथी बार आऊँगा, तुम मुझे यहाँ मिलोगे?इस सिंहासन पर कोई और बैठा होगा। इतने लोग यहाँ बदलते जाते हैं, इसीलिए
तो मैं कहता हूँ कि यह सराय है, धर्मशाला है। तुम भी टिके हो थोड़ी देर; मेरे टिक जाने में क्या बिगड़ रहा है? सुबह हुई, तुम भी चल पड़ोगे, हम भी चल
पड़ेंगे।”कहते हैं कि तब इब्राहीम को बोध हुआ। वह सिंहासन से नीचे उतर आयाऔर बोला, “तूने मुझे जगा दिया। अब तू रुक, मैं चला। अब यहाँ रुककर भी क्या करना है! यहाँ से सुबह जाना पड़ेगा, इतना समय भी क्यों गँवाना!”इब्राहीम ने छोड़ दिया राजमहल। इब्राहीम सूफियों का एक बड़ा फकीर हो गया
ओशो
संकलन कर्ता
राम नरेश यादव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
दिव्य जीवन जागृति मिशन इटावा
(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल नंबर 8218141639