बाराबंकी: जिले की हैदरगढ़ तहसील मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर गोमती के तट पर मनमोहक हरियाली के बीच औसानेश्वर का शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता है कि औसान नामक मल्लाह ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके बाद रोनी रियासत के राजा ने मंदिर का निर्माण कराया। एक दूसरी मान्यता यह भी है कि राजा शिकार खेलते हुए जंगल में पहुंचे।
शाम ढलने के समय यहां प्रकाशपुंज था। चूंकि शाम के समय को औसान भी कहते हैं इसलिए इस मंदिर का नाम औसानेश्वर महादेव पड़ गया। पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर का भवन करीब साढ़े चार सौ वर्ष पुराना है। यह मंदिर ढाई एकड़ क्षेत्रफल में फैला है। इस मंदिर पर 14 पीढ़ी तक नियंग साधुओं की गद्दी रही, जिनका जूनागढ़ अखाड़ा इलाहाबाद से संबंध था। उसके बाद छह पुश्तों से गृहस्थ आश्रम के गिरि परिवार मंदिर की देखभाल कर रहे हैं।
शिवरात्रि एवं सावन में कई जिलों के शिवभक्त यहां पूजा अर्चना करते हैं। एक मान्यता यह भी है कि पांडवों ने इस शिवलिंग की पूजा की थी। बताया जाता है कि इस शिवलिंग को मुगल शासक औरंगजेब ने नष्ट करने का आदेश दिया था। सैनिकों ने जब शिवलिंग को काटने का प्रयास किया तो शिवलिंग से खून बहने लगा। उस समय मंदिर में सांप, बिच्छू, भरैया आदि जीव जन्तु निकलकर सैनिकों को काटने लगे।
उनके डंकों से बेहाल सैनिक भाग खड़े हुए। औरंगजेब की यह कोशिश पूरी नहीं हो सकी। प्रचलित कथाओं के अनुसार शिवलिंग पर हुए घाव को ठीक करने के लिए यहां के पुजारियों ने कई वर्षों तक घी में डूबा रूई का फीहा घाव पर लगाया। जिससे घाव तो भर गया परंतु चिन्ह आज भी विद्यमान है।