Sunday , May 19 2024

विदेश

‘अमेरिका में बदलाव लाने के कई तरीके’; रनिंग मेट के सवाल पर ट्रंप समर्थक रामास्वामी का बड़ा बयान

अमेरिका में रिपब्लिकन नेता विवेक रामास्वामी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन का एलान कर चुके हैं। उन्हें ट्रंप का भावी सहयोगी और उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी भी माना जा रहा है। खुद ट्रंप इस बात का संकेत दे चुके हैं कि रामास्वामी उनके साथ लंबे समय तक काम करेंगे। इसी बीच खुद को रनिंग मेट मानने या अपनी भावी भूमिका पर रामास्वामी ने कहा कि अमेरिका में बदलाव लाने के कई और भी तरीके हैं। उन्होंने ट्रंप के चुनाव जीतने पर भविष्य में उपराष्ट्रपति बनने की संभावनाओं पर सीधा जवाब देने से इनकार कर दिया।

अमेरिका में बदलाव के लिए उद्यमी के रूप में योगदान
38 साल के रिपब्लिकन नेता और उद्यमी विवेक रामास्वामी ने कहा, इस देश में सरकार के अंदर और बाहर रहकर बदलाव लाने के कई तरीके हैं। फॉक्स न्यूज के साथ इंटरव्यू में के दौरान उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल से वे उद्यमी के रूप में अमेरिकी बाजार और समाज में बदलाव लाने के प्रयास कर रहे हैं। द हिल की रिपोर्ट के मुताबिक रामास्वामी ने एक भावुक भाषण में कहा कि अमेरिका युद्ध जैसे हालात से जूझ रहा है।

ट्रंप के समर्थन में क्या बोले रामास्वामी
उन्होंने कहा कि हमें विभाजित किया गया है। दो अलग-अलग गुट बन चुके हैं। एक जो अमेरिका से प्यार करते हैं और दूसरा अल्पसंख्यकों का वह समूह जो देश से नफरत करता है। रिपब्लिकन पार्टी ऐसे लोगों के खिलाफ खड़ी है। रामास्वामी ने ट्रंप का समर्थन करने की अपील करते हुए कहा, ‘अभी हमें ऐसे प्रमुख कमांडर की जरूरत है जो अमेरिका को जीत की तरफ ले जाए।’

आयोवा कॉकस के चुनाव परिणाम
गौरतलब है कि ट्रंप और रामास्वामी अपने अभियान के दौरान पहले भी एक-दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। आयोवा कॉकस के 40 प्रतिनिधियों में 20 ट्रंप के साथ हैं। 17 जनवरी को आई खबर के मुताबिक यहां कुल 56,250 वोट डाले गए, इसमें ट्रंप ने 32,840 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। फ्लोरिडा के गवर्नर को रॉन डेसेंटिस आठ प्रतिनिधियों के वोट साथ दूसरे स्थान पर रहे। संयुक्त राष्ट्र की पूर्व राजदूत निक्की हेली सात प्रतिनिधियों के समर्थन के साथ तीसरे नंबर पर रहीं।

ट्रंप 21वीं सदी के ‘महानतम राष्ट्रपति’
बता दें कि 17 जनवरी को आयोवा कॉकस के परिणाम सामने आने के बाद रामास्वामी ने अपना नाम वापस ले लिया था। उन्होंने बाकी रिपब्लिकन नेताओं से भी ट्रंप का समर्थन करने की अपील की थी। ट्रंप के सहयोगी बनने की अटकलों का दौर ट्रंप की तारीफ से शुरू हुआ था। रामास्वामी के अभियान की सराहना करते हुए ट्रंप ने संकेत दिया था कि वह उनके साथ लंबे समय तक काम करने को तैयार हैं। ट्रंप ने भरोसा जताया है कि वह बहुत अच्छे रिपब्लिकन नेता साबित होंगे। यह भी दिलचस्प है कि ट्रंप के खिलाफ चार गंभीर आरोपों का मुखर विरोध करने वाले चुनिंदा नेताओं में भारतवंशी विवेक रामास्वामी का नाम सबसे आगे रहा है। रामास्वामी ने ट्रंप को 21वीं सदी का ‘महानतम राष्ट्रपति’ करार दिया था।

107 दिन से जारी इस्राइल-हमास युद्ध में मृतकों का आंकड़ा 25 हजार के पार, 24 घंटे में 178 की मौत

इस्राइल और हमास का हिंसक संघर्ष पिछले साल शुरू हुआ था। सात अक्तूबर, 2023 को इस्राइल पर हमास के हमले के बाद इस्राइल डिफेंस फोर्सेज (IDF) के जवान गाजा पट्टी पर हमास के आतंकी ठिकानों पर लगातार बमबारी कर रहे हैं। हिंसक संघर्ष में पिछले 107 दिनों में 25 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक पिछले 24 घंटे में 178 लोगों की मौत हो चुकी है। शव बरामद होने के अलावा 300 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर भी सामने आई है गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को कहा कि इस्राइल और हमास शासकों के बीच तीन महीने से अदिक समय से युद्ध हो रहा है। हजारों फलस्तीनी लोगों की मौत हुई है। आंकड़ा 25 हजार से अधिक हो चुका है।

‘प्रवासी भारतीयों की भूमिका अहम, 900 फैक्टरियां लगाईं’; सैन्य शासक की भूल पर राष्ट्रपति ने कही यह बात

अफ्रीकी देश युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने प्रवासी भारतीय लोगों के योगदान की सराहना की है। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के लिए दक्षिण एशियाई समुदाय, विशेष रूप से भारतवंशी लोगों की जमकर सराहना की। मुसेवेनी ने राजधानी कंपाला में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के 19वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। उन्होंने पूर्व सैन्य शासक ईदी अमीन की गलतियों के बारे में भी बात की। अमीन ने युगांडा में बसे एशियाई लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इनमें अधिकांश भारतीय नागरिक थे।

बता दें कि युगांडा को 70 साल पहले NAM देशों के समूह में शामिल किया गया था। 1964 में मिस्र की राजधानी काहिरा में आयोजित दूसरे शिखर सम्मेलन में युगांडा को गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की सदस्यता मिली थी। 1971 से 1979 तक लगभग नौ साल अमीन युगांडा के तीसरे राष्ट्रपति रहे। शिखर सम्मेलन के दौरान उनके कार्यकाल से जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए मुसेवेनी ने कहा कि NAM देश भी युगांडा की तरह गलतियां करते हैं। हमारे पास भी ईदी अमीन नाम का शख्स था।

उन्होंने कहा कि अमीन ने हमारे एशियाई लोगों (खास तौर पर भारत और पाकिस्तान के नागरिक) को बहुत कम समय में निष्कासित कर दिया। मुसेवेनी ने देश की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान को स्वीकार करते हुए कहा कि इन लोगों ने होटल और इस्पात के उद्योग के अलावा चीनी उत्पादन में भी उल्लेखनीय निवेश किया है। उन्होंने कहा कि निष्कासन की अवधि के दौरान देश तेजी से आगे बढ़ने से चूक गया, जिसका उन्हें अफसोस है।

गौरतलब है कि युगांडा छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद बड़ी संख्या में एशियाई लोगों के बड़े समूह को संघर्ष करना पड़ा। समृद्ध होने के बावजूद इस समुदाय के लोगों को दुनियाभर में अलग-अलग जगहों पर नई दुनिया बसानी पड़ी। इन लोगों ने युगांडा में चल रहा बिजनेस बंद करना पड़ा, जिसे कई वर्षों तक खून-पसीने की कमाई से खड़ा किया गया था। दशकों बाद हालात बदले हैं और अब सरकार तस्वीर बदलने के प्रयास कर रही है।

राष्ट्रपति मुसेवेनी ने अमीन के कार्यकाल में उनकी नीतियों के कारण हुई परेशानी को दूर करने के लिए युगांडा की वर्तमान सरकार के फैसलों को भी गिनाया। उन्होंने कहा, ‘जब हम सरकार में आए तो हमने युगांडा में रहने वाले एशियाई नागरिकों और गैर-नागरिकों की संपत्तियां लौटाने का फैसला लिया। अमीन ने संपत्तियों को जब्त किया था।’ उन्होंने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में देश लौटने के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप के एशियाई लोग एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था के स्तंभ बन गए हैं। वापस लौटे भारतीय लोगों ने 900 फैक्टरियों को दोबारा शुरू कर दिया है। इससे युगांडा की अर्थव्यवस्था में भारत की अहम भूमिका रेखांकित होती है।

ईरान-पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने फोन पर की बातचीत, तनाव कम करने पर बनी सहमति

पाकिस्तान और ईरान के बीच तनाव कम करने पर समहति बन गई है। ईरान के बलूचिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर हवाई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। संबंधों की तल्खी के बीच ईरान और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने शुक्रवार को फोन पर बातचीत की। इसके बाद दोनों देश तनाव को कम करने और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में समन्वय को मजबूत करने पर सहमत हुए। साथ ही दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर सैन्य हमलों के बाद पटरी से उतरे संबंधों को सुधारने पर भी चर्चा की और मौजूदा हालात की समीक्षा की है। दोनों देशों के राजदूतों की वापसी पर भी चर्चा हुई।

पाकिस्तान के विदेश कार्यालय (एफओ) ने एक बयान में कहा कि विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने अपने ईरानी समकक्ष हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन से टेलीफोन पर बात की और पारस्परिक विश्वास व सहयोग की भावना के आधार पर ईरान के साथ काम करने की देश की इच्छा जताई। बयान में कहा गया है कि पाक विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान किया जाना चाहिए। एफओ ने कहा कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि आतंकवाद विरोधी अभियान और आपसी चिंता के अन्य मुद्दों पर सहयोग और समन्वय को मजबूत किया जाना चाहिए। दोनों पक्ष तनाव कम करने पर भी सहमत हुए। दोनों नेताओं ने पड़ोसियों के बीच घनिष्ठ भाईचारे के संबंधों को भी रेखांकित किया।

ईरान के साथ घनिष्ठ सहयोग की जरूरत
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों देशों के मंत्रियों की बातचीत के दौरान तनाव कम करने के प्रयास करने पर जोर दिया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को पाकिस्तान ने तुर्किये से भी इस संबंध में बात की। पाकिस्तान ने साफ किया कि उसे ईरान के साथ तनाव बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। पाकिस्तान ने व्यापक सुरक्षा समीक्षा के संकेत भी दिए हैं। विदेश मंत्री जिलानी ने आपसी विश्वास और सहयोग की भावना के आधार पर काम करने की भावना से भी ईरानी समकक्ष को अवगत कराया। उन्होंने ईरान के साथ सुरक्षा मुद्दों पर घनिष्ठ सहयोग की जरूरत भी बताई।

तुर्किये से बातचीत के बाद ईरान के संपर्क में आया पाकिस्तान
ईरानी समकक्ष के साथ बातचीत से पहले पाकिस्तानी विदेश मंत्री जिलानी और तुर्किये के उनके समकक्ष के बीच भी फोन पर बात हुई। इस संबंध में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्र के हवाले से रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया कि तुर्किये और पाकिस्तान की बातचीत उस समय हुई जब पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर उल हक काकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक शुरू की। इसमें देश के सभी सैन्य सेवा प्रमुख भी मौजूद रहे।

दावोस से लौटे पाकिस्तानी PM, यूएन और अमेरिका का बयान
इसके बारे में पाकिस्तान के सूचना मंत्री मुर्तजा सोलांगी ने कहा, बैठक का मकसद ‘ईरान और पाकिस्तान के बीच हालिया घटनाओं के बाद व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा समीक्षा’ की गई। हालात की गंभीरता को भांपते हुए पीएम काकर ने स्विटजरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच की यात्रा को बीच में ही छोड़ दी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों देशों से अधिकतम संयम बरतने की अपील की है। अमेरिका ने भी संयम बरतने का आह्वान किया है। हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह भी कहा कि दोनों देशों के टकराव से साफ होता है कि इस क्षेत्र में ईरान को पसंद नहीं किया जाता है।

दोनों देशों के मंत्रियों की बातचीत
ईरान-पाकिस्तान टकराव के कारण बढ़े तनाव से जुड़ी खबरों के मुताबिक पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बताया कि विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने शुक्रवार को अपने ईरानी समकक्ष होसैन अमीराब्दुल्लाहियन से फोन पर बात की। इससे पहले गुरुवार को पाकिस्तान की तरफ से जवाबी हमलों के बाद ईरान ने कहा था कि उसके क्षेत्र के सीमावर्ती गांवों में चार बच्चों सहित नौ लोगों की मौत हुई है। पाकिस्तान ने कहा कि मंगलवार को हुए ईरानी हमले में दो बच्चों की मौत हो गई।

पाकिस्तान में चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा
ईरान के साथ बढ़ते तनाव के कारण पाकिस्तान में 8 फरवरी को होने वाले आम चुनाव प्रभावित नहीं होंगे। चुनाव आयोग के प्रवक्ता के हवाले से द न्यूज इंटरनेशनल अखबार की रिपोर्ट में कहा गया, चुनाव आयोग अभी भी निर्धारित समय पर चुनाव कराने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। पाकिस्तान-ईरान तनाव के कारण चुनाव की तारीख की समीक्षा करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। आयोग तैयारियों में जुटा हुआ है। सूचना मंत्री मुर्तजा सोलांगी ने भी कहा कि चुनाव समय पर होंगे और दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव का चुनाव कार्यक्रम पर कोई असर नहीं पड़ेगा। चुनाव कराने के लिए जरूरी सुरक्षा उपायों पर सोलांगी ने कहा, सरकार शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को जरूरी सुरक्षा प्रदान करेगी। उन्होंने दोहराया, ‘अब घोषित तिथि पर आम चुनाव से पीछे हटने की कोई जरूरत नहीं है।’

‘पैदाइश’ पर सवाल उठाने वाले ट्रंप पर निक्की हेली का पलटवार, बोलीं- वे डरे हुए और असुरक्षित महसूस कर रहे

अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए होड़ बढ़ती जा रही है। इस रेस में जिन दो दावेदारों को रेस में सबसे आगे देखा जा रहा है, उनमें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय मूल की अमेरिकी नेता निक्की हेली शामिल हैं। दोनों ही नेता अपनी पार्टी से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी पाने के लिए काफी कोशिशें कर रहे हैं। इसी कड़ी में ट्रंप और हेली के बीच जुबानी जंग भी छिड़ी है। जहां एक दिन पहले ही ट्रंप ने हेली की अमेरिका में पैदाइश और नागरिकता को लेकर सवाल खड़े कर दिए थे, वहीं अब निक्की हेली ने ट्रंप पर पलटवार कर उन्हें डरा हुआ नेता बताया है।

क्या बोले थे डोनाल्ड ट्रंप?
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में निक्की हेली को उनके असली नाम ‘निम्रता’ लिखकर संबोधित किया। ट्रंप ने लिखा कि ‘क्या किसी ने बीती रात निक्की ‘निम्रता’ के भाषण को सुना। उन्हें लगता है कि वह आयोवा जीत जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह तो रॉन डी सैंटिस को भी नहीं हरा पाईं, जिनके पास अब फंड भी नहीं है और उम्मीद भी नहीं है।’

साथ ही ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट को रीपोस्ट भी किया, जिसमें दावा किया गया था कि निक्की हेली अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि जिस वक्त निक्की हेली का जन्म हुआ था, उस वक्त तक निक्की के माता-पिता को अमेरिका की नागरिकता नहीं मिली थी।

पलटवार में क्या बोलीं निक्की हेली?
निक्की हेली ने स्थानीय समयानुसार शुक्रवार शाम को एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “मैं ट्रंप को अच्छी तरह जानती हूं। जब उन्हें डर लगता है और वे असुरक्षित महसूस करते हैं, तब वे आपको नाम लेकर बुलाते हैं। मैं इस पर ऊर्जा बर्बाद नहीं करुंगी।”

भारत से अमेरिका गए थे निक्की के माता-पिता
निक्की हेली के माता-पिता भारतीय थे और वह अमेरिका शिफ्ट हो गए थे। साउथ कैरोलिना के बैमबर्ग में निक्की हेली का जन्म हुआ। अमेरिका में जन्म होने के चलते निक्की हेली को स्वतः ही अमेरिकी नागरिकता मिल गई। डोनाल्ड ट्रंप इससे पहले बराक ओबामा की अमेरिकी नागरिकता पर भी सवाल उठा चुके हैं।

पन्नू की हत्या की कथित साजिश रचने के आरोपी निखिल गुप्ता के अमेरिका प्रत्यर्पण को मंजूरी, जानें आगे

खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने के आरोपी निखिल गुप्ता की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हाल ही में, अमेरिका की एक अदालत ने सबूत देने के उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। वहीं, अब चेक रिपब्लिक की अदालत से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने साफ कह दिया है कि चेक रिपब्लिक सरकार चाहे तो आरोपी भारतीय व्यक्ति को अमेरिका के हवाले कर सकता है।

जून से जेल में बंद
निखिल गुप्ता पर अमेरिकी सरकार के वकीलों ने पिछले साल नवंबर में एक मुकदमा दायर किया था। इसमें खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू को अमेरिका की जमीन पर मारने की नाकाम साजिश में एक भारतीय सरकारी कर्मचारी के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया गया है। खालिस्तानी पन्नू के पास अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता है। निखिल को 30 जून, 2023 को चेक गणराज्य के प्राग में गिरफ्तार किया गया था और इस समय उन्हें वहीं रखा गया है। अमेरिकी सरकार उनके अमेरिका प्रत्यर्पण की मांग कर रही है।

इस मंत्री के हाथ में फैसला
अब चेक की अदालत ने निखिल के अमेरिका प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया है। देखना है कि मंत्रालय का क्या फैसला रहता है। दरअसल, निखिल गुप्ता की सारी उम्मीदें अब चेक सरकार के न्याय मंत्री पावेल ब्लेजेक के ऊपर टिकी हैं। मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि गुप्ता के प्रत्यर्पण पर अंतिम निर्णय न्याय मंत्री पावेल ब्लेजेक के हाथों में होगा।

सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं गुप्ता
न्याय मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले में मंत्री कब तक फैसला लेते हैं इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस बीच गुप्ता अपने प्रत्यर्पण को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे। निखिल के पास चेक रिपब्लिक की शीर्ष अदालत में जाने का भी विकल्प खुला है। प्रवक्ता ने कहा कि अगर उनको निचली अदालत के फैसलों पर संदेह है तो उनके पास सुप्रीम कोर्ट का रुख करने के लिए तीन महीने का समय है।

गुप्ता ने दी ये दलील
बताया जा रहा है कि गुप्ता ने दलील दी थी कि उनकी पहचान गलत की गई है। वह वो व्यक्ति नहीं हैं, जिसकी अमेरिका को तलाश है। गुप्ता ने इस मामले को राजनीतिक बताया। हालांकि, गुप्ता के वकील के हवाले से कहा गया है कि वह मंत्री से गुप्ता को प्रत्यर्पित नहीं करने और मामले को संवैधानिक अदालत में ले जाने का अनुरोध करेंगे।

मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप
बता दें कि गुप्ता के परिवार ने एकांत कारावास में गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्हें ‘कांसुलर एक्सेस’ के तहत भारत में अपने परिवार से संपर्क करने के अधिकार और कानूनी मदद लेने की स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया। इस बीच आरोपों की जांच के लिए भारत पहले ही एक जांच समिति गठित कर चुका है।

एक स्कूल के शयनगृह में लगी भीषण आग, कम से कम 13 बच्चों की मौत

चीन से एक बुरी खबर सामने आई है। यहां के मध्य हेनान प्रांत में एक स्कूल के शयनगृह में आग लगने से कम से कम 13 बच्चों की मौत हो गई। एक खबर के अनुसार, हेनान के यानशानपु गांव में स्थित यिंगकाई स्कूल में शुक्रवार को स्थानीय समयानुसार रात 11 बजे आग लगने की जानकारी मिली। दमकल कर्मी तुरंत मौके पर पहुंचे और रात 11.38 मिनट पर आग पर काबू पा लिया गया।

एक शिक्षिका ने बताया कि मारे गए सभी बच्चे तीसरी कक्षा के छात्र थे। वहीं, घटनास्थल से बचाए गए एक व्यक्ति का अस्पताल में इलाज चल रहा है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, नानयांग सिटी के समीप स्थित स्कूल के प्रबंधक को हिरासत में लिया गया है और मामले की जांच की जा रही है। मृतकों की पहचान और आग लगने के कारण के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है।

दमिश्क में इमारत पर इस्राइल का मिसाइल हमला, ईरान से जुड़े नेताओं की चल रही थी बैठक; पांच की मौत

गाजा में हमास के साथ जंग के अलावा इस्राइल कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है। एक ओर जहां हिजबुल्लाह लेबनान की ओर से उसके उत्तरी हिस्से को निशाना बना रहा है। वहीं दूसरी ओर, लाल सागर में हूती विद्रोहियों के व्यापारिक जहाजों पर हमले जारी हैं। इस बीच, इस्राइली बलों ने सीरिया में एक इमारत पर हमला किया है। इस इमारत में कथित तौर पर ईरान से जुड़े नेताओं की बैठक हो रही थी। हमले में कम से कम पांच लोगों की मौत की खबर है।

चार मंजिला आवासीय इमारत को बनाया निशाना: मानवाधिकार समूह
सीरिया में मानवाधिकारों की निगरानी करने वाले एक समूह ने समाचार एजेंसी ‘एएफपी’ को बताया, ‘सीरिया की राजधानी दमिश्क में एक इस्राइली मिसाइल से चार मंजिला इमारत को निशाना बनाया गया है। जिसमें पांच लोग मारे गए हैं। इमारत में ईरान से जुड़े नेताओं की बैठक चल रही थी।’ समूह ने सीरिया के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से कहा कि जहां इमारत को निशाना बनाया गया है, वह उच्च सुरक्षा वाला इलाका है। यह ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड और ईरान समर्थक फलस्तीनी गुटों के नेताओं का गढ़ है। मानवाधिकार समूह के निदेशक रामी अब्देल ने बताया कि उन्होंने (इस्राइल) निश्चित रूप से ईरान समर्थित समूहों के वरिष्ठ नेताओं को निशाना बनाया है।

पूरी तरह से नष्ट हुई इमारत
समाचार एजेंसी ‘सना’ ने बताया कि इस्राइल ने दमिश्क के मजेह इलाके में आवासीय इमारत को निशाना बनाया है। मजेह क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय, दूतावास और रेस्तरां हैं। एसोसिएटेड प्रेस ने बताया कि इस्राइली मिसाइलों ने पूरी इमारत को नष्ट कर दिया और हमले में दस लोग या तो मारे गए या घायल हो गए। सीरिया में गृह युद्ध के दौरान एक दशक तक इस्राइल ने सैकड़ों बार हवाई हमले किए हैं। जिनमें ज्यादातर हमले ईरान समर्थित बलों को निशाना बनाकर किए गए थे।

पिछले साल शुरू हुआ था इस्राइल-हमास युद्ध
इस्राइल और हमास के बीच बीते साल सात अक्तूबर युद्ध शुरू हुआ था। इस्राइली हमलों में 20 हजार से ज्यादा फलस्तीनी मारे जा चुके हैं। हमास ने पिछले साल अक्तूबर में एक साथ दक्षिण इस्राइल से हमले की शुरुआत की थी।आतंकवादी समूह ने एक साथ सैकड़ों मिसाइल दागी थीं। इन हमलों में 1200 से ज्यादा इस्राइली नागरिक मारे गए थे।जबकि, सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया गया था। इन बंधक बनाए गए लोगों में आधे से ज्यादा अभी भी हमास के कब्जे में हैं।

400 टॉमहॉक मिसाइल खरीदने के लिए जापान ने अमेरिका से किया सौदा,1.7 बिलियन डॉलर में हुआ सौदा

जापान ने गुरुवार को अमेरिका के साथ 400 भूमि-आधारित टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों को खरीदने के लिए करार किया है। दोनोें देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। अमेरिकी विदेश सैन्य ब्रिक्री कार्यक्रम के तहत हुए सौदे के अनुसार, अमेरिका मिसाइलों सहित अन्य उपकरण खरीदने के लिए 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करेगा। जापान में पदस्थ अमेरिकी राजदूत रहम एमानुएल ने बताया कि अमेरिकी सेनाएं जापान के आत्मरक्षा बलों को टॉमहॉक्स का इस्तेमाल करने के लिए मार्च से प्रशिक्षण देना शुरू कर देंगी। जापानी मीडियी के अनुसार, मिसाइलों की मारक क्षमता 1600 किलोमीटर है।

नॉर्वेजियन संयुक्त स्ट्राइक मिसाइल खरीदने के लिए भी करार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जापान अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। चीन की सैन्य वृद्धि और उत्तर कोरिया के बढ़ते परमाणु और मिसाइल हमलों के बीच जापान खुद की सुरक्षा पुख्ता कर रहा है। जापान भी दुश्मनों के ठिकानों को नेस्तानाबूत करने के लिए खुद को सश्क्त कर रहा है। जापान ने हाल में ही अपने काउंटर स्ट्राइक क्षमता को हासिल करने का फैसला किया है। जापान सरकार की मानें तो उन्होंने अक्तूबर 2026 में नॉर्वेजियन संयुक्त स्ट्राइक मिसाइलें खरीदने के लिए एक और करार किया है। संयुक्त स्ट्राइक मिसाइलों की रेंज लगभग 500 किलोमीटर है। उम्मीद है कि नॉर्वेजियन मिसाइलों को एफ-35 (ए) स्टील्थ लड़ाकू विमानों पर लोड किए जाने की उम्मीद है।

‘कोई और विकल्प…’, फलस्तीन को अलग देश का दर्जा दिए जाने से इस्राइल के इनकार पर आया अमेरिका का बयान, पढ़ें

हमास और इस्राइल के बीच जंग जारी है। युद्ध में अब तक दोनों पक्षों के हजारों लोगों की मौत हो गई है। जहां इस्राइल ने हमास को पूरी तरह खत्म करने का संकल्प लिया है। वहीं, अब आतंकी समूह भी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। फिलहाल, न तो जंग की रफ्तार कम हो रही है और न ही लोगों की जान की परवाह की जा रही है। इस बीच, अमेरिका और इस्राइल के बीच फलस्तीन को अलग एक देश का दर्जा दिए जाने पर बहस छिड़ गई है। एक तरफ अमेरिका का कहना है कि दो-राष्ट्र समाधान क्षेत्र में स्थायी शांति लाने का एकमात्र संभव तरीका है। वहीं, दूसरी तरफ इस्राइल ने इससे इनकार कर दिया है।

क्या है दो-राष्ट्र समाधान?
दो-राष्ट्र समाधान उन क्षेत्रों में दो देशों– इस्राइल और फलस्तीन– के वजूद की बात करता है जो कभी ब्रिटिश शासन के अधीन फलस्तीन क्षेत्र था। फलस्तीन के शासन क्षेत्र को दो राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव पहली बार 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने दिया था, जब इसने यूएनजीए प्रस्ताव 181 (II) पारित किया था। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावित बंटवारे में, कहा गया था कि ब्रिटिश शासन वाले क्षेत्र को भविष्य में यहूदी राज्य के तौर पर लगभग 55 प्रतिशत भूमि दी जाएगी, जबकि बाकी 45 प्रतिशत अरब राज्य (फलस्तीन) को देने की बात कही गई थी। हालांकि, 1948 में इस्राइल की स्थापना के 75 साल बाद भी इस मुद्दे पर संघर्ष जारी है।

इस्राइल के पास एक मौका
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने गुरुवार को कहा कि फलस्तीन देश की स्थापना के बिना गाजा में शांति लाना और इस्राइल की दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौतियों को हल करने का कोई तरीका नहीं है। उन्होंने कहा कि इस्राइल के पास फिलहाल एक मौका है, क्योंकि क्षेत्र के देश उसे सुरक्षा आश्वासन देने के लिए तैयार हैं। मिलर ने कहा कि स्थायी सुरक्षा प्रदान करने का कोई तरीका नहीं है। गाजा के पुनर्निर्माण, गाजा में शासन स्थापित करने और फलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना के बिना गाजा के लिए सुरक्षा प्रदान करने की अल्पकालिक चुनौतियों को हल करने का कोई तरीका नहीं है।

इस्राइली पीएम ये बोले
दरअसल, अमेरिका का ये बयान ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था कि उन्होंने वाशिंगटन को बताया था कि उन्होंने किसी भी फलस्तीनी राष्ट्र का विरोध किया है जो इस्राइल की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता है।नेतन्याहू ने कहा था, ‘मैं स्पष्ट करता हूं कि भविष्य में किसी भी व्यवस्था में, एक समझौते के साथ या बिना किसी समझौते के, हमारा जॉर्डन नदी के पश्चिम में पूरे क्षेत्र पर सुरक्षा नियंत्रण होना चाहिए। यह एक जरूरी शर्त है। यह संप्रभुता के सिद्धांत से टकराता है, लेकिन आप क्या कर सकते हैं।’

दोनों का ये मत
इस्राइल और उसके सबसे बड़े समर्थक संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध कुछ डगमगाते दिख रहे हैं। नेतन्याहू और उनकी दक्षिणपंथी गठबंधन सरकार ने फलस्तीन के लोगों को एक अलग राष्ट्र का दर्जा दिए जाने से मना कर दिया है। भले ही वाशिंगटन का कहना है कि दो-राष्ट्र समाधान इस क्षेत्र में स्थायी शांति लाने का एकमात्र संभव तरीका है।